सर्वप्रथम मन को जानने की कोशिश करनी होगी. हम अपनी जानी हुई बुराई ना करे, और की हुई भूल दोहराए नहीं। दूसरे के दोष देखने में अपना ज़रा सा भी अधिकार ना माने।